जिनालय वंदना
जिन भवन देखकर मुझको संसार का किनारा नजर आता है ।
सहज ही शरण मिलती हमको , मन शांत शीतल हो जाता है ।
प्राप्त करके छत्रछाया , भाव नमन हो जाता है ।
बाहर के कर्तृत्व भाव को त्याग , बस एक चेतन आनंद से भर जाता है ।
श्रद्धा पुष्प समर्पण में ही , यह जीवन हमें लगाना है ।
मिथ्या भ्रम को छोड़ मुझे , अब आत्म ध्यान को ध्याना है , और निज में ही रम जाना है , अतिशय आनंद प्रगटाना है , अंतर सुख को पाना है ।
जिनदेव , जिनालय , जैनधर्म , जिनवाणी माता की जय हो, जय हो , जय हो ।।
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