जिनालय वंदना

 जिन भवन देखकर मुझको संसार का किनारा नजर आता है ।

सहज ही शरण मिलती हमको , मन शांत शीतल हो जाता है ।

प्राप्त करके छत्रछाया , भाव नमन हो जाता है ।

बाहर के कर्तृत्व भाव को त्याग , बस एक चेतन आनंद से भर जाता है ।

श्रद्धा पुष्प समर्पण में ही , यह जीवन हमें लगाना है ।

मिथ्या भ्रम को छोड़ मुझे , अब आत्म ध्यान को ध्याना है , और निज में ही रम जाना है , अतिशय आनंद प्रगटाना है , अंतर सुख को पाना है ।



जिनदेव , जिनालय , जैनधर्म , जिनवाणी माता की जय हो, जय हो , जय हो ।।

https://suno.com/s/MWiB1hmGPwcDggFv

Comments

Popular posts from this blog

कक्षा 8 , हिंदी , भारत की खोज , अध्याय 2, तलाश के प्रश्नोत्तर

कक्षा 8 , हिन्दी, भारत की खोज , अध्याय 1 अहमदनगर का किला , प्रश्नोत्तर

ncert , class 10 , राम - लक्ष्मण - परशुराम संवाद , questions answer